तेज़ एक्सप्रेस न्यूज़ – विष्णु गुप्ता
सासाराम, बिहार से आने वाले आकाशदीप के पिता शुरुआत में नहीं चाहते थे कि बेटा क्रिकेट खेले। गलती उनकी नहीं थी क्योंकि बिहार में उस वक्त लेदर क्रिकेट का मतलब बर्बादी था। BCCI ने भ्रष्टाचार के आरोप में बिहार क्रिकेट संघ की मान्यता खत्म कर दी थी। साधारण शब्दों में इतना समझिए कि बिहार से अलग होकर झारखंड बना, उसको मान्यता मिल गई और वह रणजी ट्रॉफी खेलने लगा। बिहार की स्थिति जस की तस रही। आकाशदीप को पड़ोसी भी बहुत ताने मारते थे। कहते थे कि अपने बच्चों को इसकी संगति से दूर रखो सबको क्रिकेट का चस्का लगाकर बिगाड़ देगा। अब आकाशदीप के लिए बिहार में रहना बहुत मुश्किल हो गया था।
आकाशदीप ने बिहार छोड़कर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर का रुख किया। वहां पर टेनिस क्रिकेट खेल कर लोग पैसे कमा सकते थे। पिता ने कई बार आकाशदीप को सरकारी चपरासी बनने के लिए कहा। पिता ने फॉर्म भी लाकर दिया लेकिन बेटे ने इनकार कर दिया। वह फॉर्म भर देते थे और एग्जाम में खाली शीट जमा कर वापस घर आ जाते थे। दुर्गापुर में आकाशदीप ने टेनिस क्रिकेट में अपना मुकाम बना लिया। ऐसा हो गया कि उन्हें हर मैच के लिए ₹5000 से ₹6000 दिए जाने लगे। जिस टीम में आकाशदीप खेलते थे, उस टीम की जीत बगैर खेले ही सुनिश्चित हो जाती थी। इस बीच भी आकाशदीप ने लेदर क्रिकेट की प्रैक्टिस करना बंद नहीं किया। दुर्गापुर के लोकल क्लब में वह दिन-रात जोर लगाते थे।
आकाशदीप को उस क्लब के जरिए आगे बढ़ने का मौका मिलता, इससे पहले ही स्ट्रोक की वजह से पिता का निधन हो गया। 4 महीने के भीतर बड़ा भाई भी चल बसा कुल मिलाकर यह कि 6 महीने में आकाशदीप की दुनिया बदल गई। अब इस लड़के पर परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी थी। आकाशदीप बताते हैं कि इस दौर में उनके आंसू भी सूख गए थे। आकाशदीप ने 3 साल के लिए क्रिकेट छोड़ दिया और मां का ध्यान रखने के लिए छोटी-मोटी नौकरी करने लगे। उनके चेहरे से खुशी हमेशा के लिए जा चुकी थी। 3 साल बाद भी क्रिकेट आकाशदीप से छूट नहीं पाया। उन्होंने जो भी पैसे कमाए, सब मां को देकर वापस दुर्गापुर, बंगाल लौटे।
लोगों ने सलाह दी कि कोलकाता चले जाओ। वहां अगर किसी क्लब से जुड़कर लेदर क्रिकेट खेलोगे, तो आगे बढ़ने का मौका है। अपने एक कजिन ब्रदर के साथ कोलकाता में आकाशदीप ने छोटा सा कमरा किराए पर लिया। खाने-पीने की दिक्कत थी। यहां तक कि पहनने-ओढ़ने के लिए कपड़े भी नहीं थे। सिर्फ क्रिकेट था, जिसकी बदौलत आकाशदीप की सांस चल रही थी। मेहनत रंग लाई और बंगाल की अंडर-23 क्रिकेट टीम में उनका सिलेक्शन हुआ। इसके बाद इस युवा खिलाड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज मां के सामने आकाशदीप को टेस्ट डेब्यू करने का मौका मिला है। भगवान ने उनकी सुन ली। jyadav मेंशन कर आकाशदीप को ऑल द बेस्ट विश कीजिए। जिस तरह उन्होंने रांची टेस्ट के पहले सेशन में इंग्लैंड के 3 विकेट चटकाए, क्या आपको लगता है कि आकाशदीप लंबे अरसे तक भारत के लिए खेलेंगे?